

जिला सारंगढ़ – बिलाईगढ़ के कलेक्टर के निर्देश पर जिला मे उतेरा फसल को बढ़ावा देने निदेशित की गई है जिसमे उप संचालक कृषि सारंगढ़ श्री आषुतोष श्रीवास्तव द्वारा किसानों को उतेरा फसल के बारे मे बताया कि उतेरा की फसल मे किसान रबी सीजन की मुख्य फसलें जैसे अलसी, सरसों, चना, तिवड़ा, , मसूर, मटर आदि खेती कर सकते है , उतेरा विधि से फसल लगाने की इस पद्धति में दूसरे फसल की बुवाई पहली फसल के कटने से पूर्व ही कर दी जाती है। इसके माध्यम से किसानों को धान के साथ-साथ दलहन, तिलहन और अतिरिक्त उपज मिल जाती है। दलहन फसलों से खेतों को नाईट्रोजन भी प्राप्त होता है। इस विधि से खेती करने से मिट्टी को नुकसान नही पहुंचता और जैव विविधिता व पर्यावरण का संरक्षण भी होता है तथा इस विधि से खेती करने से फसलों से डंठल व पुआल जलाने की जरूरत नही पड़ती।उतेरा विधि से खेती सामान्यतः धान की फसल में ही की जाती है, जब धान की फसल कटाई के 15-20 दिन पहले जब पकने की अवस्था में हो अर्थात् मध्य अक्टूबर से नवंबर के बीच अगली फसल के बीज लगा दिए जाते हैं। बुआई के समय मिट्टी में इतनी नमी होना चाहिए कि बीज गिली मिट्टी में चिपक जाए।

इसी कड़ी मे सरसों की खेती करे,सरसो की खेती जिला में सरसो की खेती प्रमुख तिलहनी फसल के रूप लिया जा रहा है, सरसो की खेती सीमित सिंचाई की दशा में अधिक अधिक लागदायक फसल है। सरसो फसल के लिए 25 से 30 डिग्री संटीग्रेट तापमान होना चाहिए, सरसो की फसल के लिए दोमट भूमि सर्वोंतम होती है, जिसमें की जल निकास उचित प्रबन्ध ढोना चाहिए । सरसो की बुआई के लिए, सितंबर के आखरी हफ्ते
से अक्टूबर पहले हपते का समय सही रहता है जिसकी कटाई आमतीर पर फरबरी से मार्च के बीच में होता है। सरसों की बुआई छिटकाब विधि या कतारों में की जा सकती है। उतेरा फसल मे बीज की मात्रा प्रति एकड 2,3 किलोग्राम लगता है इसमे जोताई की आवश्कता नही होती ,कास्त लागत- 3 से 4 हजार रुपये लगता है,कुल लाभ 10से 12 हजार रुपये आता है
