मैं हसदेव हूं (मैं निराश हुं)एक अनसुनी बातें मन की
मैं हसदेव हूं मैं विकास हूं।
मगर मैं आज निराश हूं।
मैं पहाड़ियों से निकली जंगलों की आश हूं।
मैं वृक्षों (जंगलों )के दोहन (कटाई) के खिलाफ हूं।
मैं हसदेव हूं ,और विकास हूं।।
मैं कोयले की खनन से चिंतित हूं।
मैं आपके खेतों के लिए सिंचित हूं।
मैं हसदेव हूं और मैं विकास हूं।।
मैं जंगलों के इतिहास के लिए चिंतित हूं।
मैं वन्यजीवों के विकास के लिए चिंतित हूं।
मैं वनों के साथ हूं।
जन जीवन का विकास हूं।
मैं हसदेव हूं, और आज मैं निराश हूं।।
माना कि मैं विकास हूं।
आप लोगों के साथ हूं।
अंकुर के मन की आवाज हूं।
और आज मैं निराश हूं।
इस गंदे विकास के खिलाफ हूं।
इस गंदे विकास के खिलाफ हूं।
मैं हसदेव हूं ,और आज मैं निराश हूं।। मैं इन कविता के माध्यम से हसदेव अरण्य के बचाव के लिए चल रहे आंदोलन को लोगो के बीच जगरूकता के रूप में प्रकाशित करना चाहता हु मेरा विषय हसदेव का इतिहास व आज के वर्तमान में हो रहे विकास के नाम पर जंगलों का विनाश से हसदेव अरण्य की निराश भावना है।
कविताकार- अंकुर यादव पिता -सुरेश यादव ऐतमानगर (बागों) कोरबा(छ. ग.) वाट्स -9407839341 मो -626109510 (raavtankur007@gmail.com)