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उच्च शिक्षामंत्री उमेश पटेल के हाथों सारंगढ़ मे कृष्ण कुंज शिलान्यास के साथ वृक्षारोपण कार्यक्रम हुआ सम्पन्न…

सारंगढ़. छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा चलाई जा रही कृष्ण कुंज योजना के तहत इस बार जन्माष्टमी पर छत्तीसगढ़ के 121 नगरी निकाय क्षेत्र में पौधे लगाए जाएंगे. इसके साथ ही लोग पौधों को गोद भी ले सकते हैं. इसके लिए सरकार ने पूरी तैयारी कर ली है, कृष्ण कुंज योजना के तहत बरगद,पीपल, नीम,कदम और फलदार पौधे लगाए जाएंगे। इसी तारतम्य मे आज 19 अगस्त श्री कृष्ण जन्माष्ट्मी के शुभ दिन पर सारंगढ़ संस्कृतिक महत्व के जीवन उपयोगी वृक्षारोपण कृष्ण कुंज का नगरीय निकाय क्षेत्र सारंगढ़ आज लोकार्पण किया गया।
इस उपलक्ष्य मे उच्च शिक्षामंत्री उमेश नंदकुमार पटेल ,विधायक उत्तरी गणपत जांगड़े, अरुण मलाकर, सोनी बंजारे,मंजू मालाकार, एसडीओपी प्रभात पटेल, थाना प्रभारी सीताराम ध्रुव सहित सैकड़ों गणमान्य नागरिक मौजद थे।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल पर छत्तीसगढ़ के सभी नगरीय क्षेत्रों में ’कृष्ण कुंज’ विकसित किए जाएंगे. कृष्ण कुंज में बरगद, पीपल, नीम और कदंब जैसे सांस्कृतिक महत्व के जीवनोपयोगी पौधों का रोपण किया जाएगा. मुख्यमंत्री ने सभी कलेक्टरों को ’कृष्ण कुंज’ विकसित करने के लिए वन विभाग को न्यूनतम एक एकड़ भूमि का आबंटन करने के निर्देश दिए हैं. अब तक राज्य के 121 स्थलों को ’कृष्ण कुंज’ के लिए चिन्हांकित कर लिया गया है. पौधरोपण की तैयारी भी बड़ी उत्साह के साथ की जा रही है. इस कृष्ण जन्माष्टमी से पूरे राज्य में ’कृष्ण कुंज’ के लिए चिन्हित स्थल पर पौधरोपण की शुरुआत की जाएगी।
कृष्ण कुंज योजना के तहत जनता पौधों को गोद भी ले सकते हैं इसके लिए प्रशासन ने वेबसाइट भी बनाया है. इसके लिए निर्धारित राशि देनी होगी. इस पहल के माध्यम से हर नागरिक पर्यावरण को बढ़ावा देने अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। इनके पेड़ों की सुरक्षा और देखभाल कृष्ण कुंज में लगा सुरक्षा दस्ता करेगा।

वृक्षारोपण को जन-जन से जोड़ने, अपने सांस्कृतिक विरासत को सहेजने और उन्हें विशिष्ट पहचान देने के लिए इसका नाम ‘कृष्ण-कुंज’ रखा गया है. विगत वर्षों में शहरीकरण की वजह से हो रही अंधाधुंध पेड़ों की कटाई से इन पेड़ों का अस्तित्व खत्म होता जा रहा है. आने वाली पीढ़ियों को इन पेड़ों के महत्व से जोड़ने के लिए ‘कृष्ण-कुंज’ की पहल की जा रही है.
सांस्कृतिक विविधताओं से परिपूर्ण छत्तीसगढ़ का हर एक पर्व प्रकृति और आदिम संस्कृति से जुड़ा हुआ है. इनके संरक्षण के लिए ही यहां के तीज-त्यौहारों को आम लोगों से जोड़ा गया और अब ‘कृष्ण-कुंज’ योजना के माध्यम से इन सांस्कृतिक महत्व के पेड़ों को सहेजने की अच्छी पहल हो रही है. जो आने वाली पीढ़ियों को एक बेहतर कल की ओर ले जाएगी और एक नए छत्तीसगढ़ के निर्माण में अपनी भूमिका निभाएगी.

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