ब्रह्माकुमारीज़ प्रभु पसन्द भवन सारंगढ़ में धूमधाम से मनाई गई गीता जयंती

गीता केवल ग्रंथ नहीं परमात्म प्रदत्त जीवनशास्त्र है – ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी
गीता ज्ञान शिविर में पांचवे दिन ज्ञान, योग और श्रेष्ठ कर्म का संदेश
सारंगढ़। गीता जयंती के अवसर पर आयोजित विशेष कार्यक्रम में श्रीमद् भगवत गीता के ज्ञान, योग और कर्म के गूढ़ रहस्यों पर सारगर्भित प्रवचन हुआ। बिलासपुर से आयीं ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी ने कहा कि गीता केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि “जीवन को दिव्य और संतुलित बनाने वाला शाश्वत मार्गदर्शक” है। इस अवसर पर सारंगढ़ सेवाकेंद्र प्रभारी ब्रह्माकुमारी कंचन दीदी, मंजू दीदी, मिथलेश बहन, राजू भामरा जी, अजय मित्तल सहित अन्य बहनों व अतिथियों ने दीप प्रज्वलित कर खुशियाँ मनाई।

इस अवसर पर ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी ने बतलाया कि गीता के 18 अध्यायों में मानव जीवन की सभी समस्याओं का समाधान निहित है। हमारी सनातन परंपरा में अगहन मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को गीता जयंती पर्व के रूप में मनाया जाता है। गीता ज्ञान से मुक्ति एवं जीवन मुक्ति की प्राप्ति होती है इसलिए इसे मोक्षदा एकादशी भी कहते हैं।
दीदी ने आगे बतलाया द्वितीय अध्याय ‘सांख्य योग’ के माध्यम से परमात्मा ने अर्जुन का विषाद दूर करते हुए ज्ञानयोग की महिमा समझाई। वक्ता ने कहा कि जिसने भी गीता के ज्ञान को समझा और जीवन में अपनाया, उनके विचार, व्यवहार और व्यक्तित्व में सकारात्मक परिवर्तन अवश्य आता है।

दीदी ने गीता में वर्णित विभिन्न यज्ञों का उल्लेख करते हुए स्पष्ट किया कि ज्ञान यज्ञ सभी यज्ञों में सर्वोच्च है। “ज्ञान से बढ़कर कोई पवित्र तत्व नहीं”—इस उद्धरण के माध्यम से ज्ञान की आवश्यकता पर विशेष बल दिया।
कर्मयोग पर बोलते हुए दीदी ने कहा कि गीता के पाँचवें अध्याय में “फल की इच्छा का त्याग कर कर्म करने” को ही सच्चा सन्यास बताया गया है। संन्यास का अर्थ जिम्मेदारियों से भागना नहीं, बल्कि बुरी आदतों का त्याग करना है। इसलिए गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी योगी बनना ही श्रेष्ठ माना गया है।
छठे अध्याय के संदर्भ में ध्यान योग, मन-नियंत्रण और जीवन-शैली में संतुलन पर प्रकाश डाला गया। दीदी ने बताया कि साधक को भोजन और निद्रा दोनों में संयम रखना चाहिए, क्योंकि असंतुलन योग-सफलता में बाधक बनता है। आत्मा को ज्योति-बिंदु स्वरूप समझकर परमात्मा की ज्योति में मन को एकाग्र करने की विधि भी समझाई गई।

कार्यक्रम के अंत में दीदी ने कहा कि योगी, तपस्वी और ज्ञानी की तुलना में श्रेष्ठ होता है, इसलिए गीता का संदेश है कि प्रत्येक व्यक्ति “योगी” बने। संपूर्ण आयोजन मानव जीवन में ज्ञान, योग और श्रेष्ठ कर्म को अपनाने तथा काम, क्रोध, लोभ जैसे अंतर्मन के शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की प्रेरणा देता रहा।




