बिलासपुर. गरीब महिला की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत के मामले को लेकर बिलासपुर आईजी रतनलाल डांगी ने दरियादिली दिखाते हुए दोषी पुलिस अफसर पर मेहरबानी करते हुए कार्रवाई करने के बजाय निलंबन से बहाल कर दिया वही भाजपा नेता द्वारा कुछ दिनों पूर्व कोयला चोरी की फेक वायरल वीडियो को लेकर तत्काल संज्ञान में लेना कई सारे सवालों को जन्म देने लगा है। यही नहीं आई जी द्वारा इस मामले पर त्वरित संज्ञान लेना शासन की कुशल प्रशासनिक ब्यवस्था के सभी दावों को भी कटघरे में खड़ा करने जैसा प्रतीत हो रहा है।
उल्लेखनीय है बीते 2 माह पूर्व गौरेला पेंड्रा मरवाही जिला के थाना गौरेला अंतर्गत ग्राम धोबहर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र परिसर अंदर महिला चंपा बाई की संदिग्ध परिस्थितियों में फांसी पर लटकता हुआ शव मिला था। मृतिका की मां बिलासिया बाई ने अपनी बेटी चंपा बाई के साथ हुए छेड़खानी सहित अत्याचार की शिकायत पर कार्रवाई नहीं करने तथा बेटी की हत्या कर फांसी के फंदे पर लटका देने जैसा गंभीर आरोप पुलिस सहित सरपंच, ड्रेसर आर एस भदौरिया, ठेका कर्मचारी अमित ध्रुव उसकी पत्नी एवं मां पर लगाया था जिस पर तत्कालीन थाना प्रभारी प्रवीण द्विवेदी को निलंबित भी किया गया था।
मामले के कुछ दिनों बीतने के बाद ही बिलासपुर आईजी रतनलाल डांगी द्वारा निलंबित किए गए थाना प्रभारी प्रवीण द्विवेदी को बहाल कर दिया गया। मृतिका की मां आज भी न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खा रही है।मृतिका की मां बिलासिया बाई पुलिस से न्याय की आस में रोती बिलखती टकटकी लगाए इंतजार में बैठी हुई है।
पुलिस द्वारा की जा रही कार्रवाई से न्याय नहीं मिलता देख प्रार्थिया बिलासिया बाई ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। हाईकोर्ट ने भी मृतिका की मां द्वारा लगाए गए अर्जी को स्वीकार करते हुए पूरे मामले में पुलिस द्वारा किए गए इन्वेस्टिगेशन और महिला द्वारा की गई शिकायत पर की गई कार्रवाई की जानकारी देने सात दिवस का अल्टीमेटम हाईकोर्ट के महाधिवक्ता के माध्यम से प्रस्तुत करने को कहा है जिसकी समय सीमा भी पूर्ण हो चुकी है।
वहीं दूसरा पहलू भाजपा नेता ओपी चौधरी द्वारा हाल ही में वायरल किये गए एक फेक वीडियो का है जिसमें सैकड़ों लोगों के द्वारा खदान से बोरी में कोयला भरने एवं ले जाते हुए लोगों की भीड़ दिखाई दे रही है जिसे एशिया के सबसे बड़े माइंस कोरबा गेवरा का होना लिखा गया था। उक्त वीडियो के वायरल होते ही बिलासपुर आईजी रतनलाल डांगी द्वारा तत्काल मामले को संज्ञान में लेते हुए जांच पड़ताल करने टीम गठित कर दिया गया।
अब सवाल यह है कि जिस तरह गरीब महिला के साथ हुए अत्याचार के मामले को लेकर गौरेला पुलिस द्वारा रिपोर्ट नहीं लिखना और कुछ दिनों के बाद महिला की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो जाना जिसकी शिकायत मृतिका की मां द्वारा पुलिस अधीक्षक, बिलासपुर आईजी, डीजीजी सहित मुख्यमंत्री तक करते हुए न्याय की गुहार लगाए जाने के बाद भी बिलासपुर आईजी रतनलाल डांगी का ह्रदय नहीं पिघलना और ना ही पुलिस द्वारा 2 महीने बीत जाने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं करना आखिरकार किन बातों को स्पष्ट करता है। वही एक फर्जी वायरल वीडियो को लेकर आईजी साहब की तत्परता कई सारे सवालों को जन्म दे रही है।
भाजपा शासन में दो बार रह चुके है कोरबा एसपी –
बिलासपुर आईजी रतन लाल डांगी पूर्ववर्ती भाजपा शासन में कोरबा जिले के पुलिस अधीक्षक जैसे महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी संभाल चुके है और कोरबा के इतिहास में पहली बार किसी आईपीएस अधिकारी को दो बार इस पद की जिम्मेदारी मिली थी। डांगी साहब के कार्यकाल के दौरान कोरबा जिले में कोयला चोरी के मामले आते रहे है मगर कार्यवाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति किया जाता था। वर्तमान में फेंक वीडियो वायरल का मामला भाजपा नेता से जुड़ा हुआ है जिससे चर्चा यह भी हो रही है कि कही आईजी साहब का भाजपा पर मेहरबानी तो नही है और कांग्रेस की सरकार को बदनाम करने का बड़ा षड्यंत्र किया जा रहा है? हालांकि इन बातों में कितनी सच्चाई है यह स्पष्ट नही है और ना ही हमारे द्वारा इसकी पुष्टि की जा रही है सिर्फ लोगों की चर्चाओं से कयास लगाए जा रहे है।
क्या किसी गरीब महिला की संदिग्ध परिस्थिति में हुई मौत वाले मामले के सामने कोयला चोरी जैसे फेक वीडियो का मामला बड़ा संवेदनशील है? और यदि नहीं तो फिर आईजी साहब की संवेदनाएं इस पीड़ित बुढ़िया, लाचार, गरीब मां जो न्याय की आस लगाए बैठी हुई है के मामले पर क्यों दिखाई नहीं दे रहे हैं? या तत्कालीन थाना प्रभारी प्रवीण द्विवेदी पर क्या आईजी साहब की विशेष मेहरबानी है कि उसे मामले से बचाने का प्रयास किया जा रहा है? अपने आप में बड़ा सवाल है।
महिला न्याय की गुहार के लिए दर-दर भटक रही थी। इस मामले को लेकर टाइम्स ऑफ इंडिया के डिजिटल प्लेटफार्म में भी समाचार का प्रसारण हुआ था जिसके बाद राज्य महिला आयोग ने स्वतः मामले को संज्ञान लेते हुए मामले में निष्पक्ष कार्यवाही का भरोसा मृतिका की मां को दिलाया था। लेकिन कार्यवाई में विलम्ब होता देखे महिला को न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा है। इस मामले को लेकर विपक्ष के नेताओ द्वारा भी चुप्पी साधी गई। क्या महिला को न्याय दिलाने के लिए इस तरह के संवेदनशील मामले में त्वरित जांच की आवश्यकता नहीं थी ? महिला संबंधित अपराध को लेकर प्रदेश सरकार की संवेदनशीलता और प्रदेश के डीजीपी के आदेश के बाद क्या इस मामले में कोई चूक हुई है।
वहीं इस तरह आईजी साहब की कार्यशैली से कई सारे सवाल जरूर उभरने लगे हैं जिसका जवाब सिर्फ आईजी साहब ही दे सकते हैं।अपराधिक मामलों की शिकायतों पर तेजी से जांच की आवश्यकता है। ताकि कार्रवाई में संलिप्त लोगों के ऊपर समय रहते कानून का शिकंजा कसा जा सके साथ ही संभावित अपराध की परिस्थितियों को भागते हुए तत्काल रोका जा सके।