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2 साल कोरोनाकाल फिर हड़ताल,कैसे तय होगा भविष्य तुम्हारा नौनिहाल….सरकारी कर्मचारी-अधिकारियों के बच्चों का भविष्य उजाले मे, लेकिन गरीब मजदूरों के बच्चों का तकदीर अंधेरे मे, आखिर तक …? पूछता है छतीसगढ़…..

सारंगढ़ भारत विश्व की 10 सबसे तेज विकास करने वाली शक्तियों में शुमार है किंतु अभी भी लगभग 40% लोग अशिक्षित या अल्प-शिक्षित हैं। 2004 की ग्लोबल एजुकेशन रिपोर्ट में विश्व के 127 देशों में भारत का स्थान 106वां है।
सरकारी स्कूलों में छात्र संख्या तो बढ़ रही है लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता रसातल में जा रही है। इन विद्यालयों में सिर्फ वे ही छात्र आते हैं जिनके मां-बाप मजदूरी करते हैं एवं वे अपने बच्चो को सिर्फ इसलिए प्रवेश कराते हैं कि उनको छात्रवृत्ति मिलेगी।
क्यूंकि 95% लगभग सरकारी कर्मचारी अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल मे पढ़ाते हैँ जिनमे स्वयं सरकरी स्कूलों के शिक्षकों के बच्चे भी बहुतायत मे शामिल होते हैँ तो भला ऐसे मे सरकारी स्कूल मे सुधार की गुंजाईस भला कैसे संभव हो? उपर से सरकारी शिक्षकों को पढ़ाई जे अलावा बेवजह अन्यत्र कार्यों पंजी संधारण से लेकर ट्रेनिंग, जानकारी मांगना और कोविड 19 का प्रकोप के साथ हमारे छत्तीसगढ़ के सरकारी शिक्षकों का आये दिन हड़ताल….!

हड़ताल का दंश झेल रहे गरीब मजदूर के बच्चे –

पूर्व शिक्षकर्मियों के हड़ताल के मार से उबरे अब वेतन विसंगतियों और डीए, HRA को लेकर फ़ेडरेशन के आह्वान पर अनिश्चितकालीन हड़ताल कर रहे शिक्षकों का सबसे अधिक दंश कोई झेल रहे हैँ तो वो सिर्फ गरीब और मजदूर परिवार के बच्चे ही हैँ जिनकी हैसियत सरकारी कर्मचारी और पूंजीपति वर्ग के बच्चों की तरह नही है और इनके शिक्षा का बेसिक खराब होते जा रहा है।

सरकारी कर्मचारी बेफिक्र क्यूंकि उनके बच्चों का पढ़ाई चल रहा अनवरत –

सरकार और कर्मचारी अधिकारी के मध्य जो भी आपसी टकरार है वो अलग है लेकिन एक बात तो निसंदेह सत्य है की सरकारी कर्मचारी और अधिकारीयों को अपने लाडलों अर्थात बच्चों के भविष्य को लेकर कोई चिंता नही है चाहे हड़ताल 10 दिन चले या 1 साल क्यूंकि उनके कर्णधार तो प्रतिदिन प्राइवेट स्कूल जा रहे हैं जहाँ प्रतिदिन पढ़ाई, होमवर्क से लेकर सभी क्रियाकलाप हो रहे है, सरकार और मंत्रियों के बच्चे तो संभवतः अन्य राज्यों के टॉप स्कूलों या विदेश मे भी पढ़ाई कर रहे हों उन्हे सारंगढ़, रायगढ़ या प्रदेश के सरकारी स्कूलों के गरीब और मजदूर वर्गों के बच्चों की फ़िक्र करने की भला क्या जरूरत?

बच्चों के भविष्य के खातिर मुख्यालय को छोड़कर शहर मे निवास करते हैँ सरकारी कर्मचारी –

कहते हैँ अगर बीज अच्छा ना हो तो फ़सल भी खराब निकलती है इसी करण अपने बेटे बेटी के अच्छे शिक्षा के लिए दिन रात चिंतित सरकारी कर्मचारी उच्च आदेश की अवहेलना कर मुख्यालय मे नही रहकर शहर किनारे रहने मे भलाई समझते हैँ ताकि उनके बच्चे किसी अच्छे प्राइवेट या कान्वेट स्कूल मे पढ़ सकें उन्हे अच्छी कोचिंग मिल सके इसके लिए उन्हे सरकार की आदेश तक की चिंता नही और तो और फिल्ड अधिकारी जिन्हे मुख्यालय मे ही निवास करना है ताकि जनता का सम्पर्क उनसे प्रतिदिन हो सके वो भी मुख्यालय मे नही रहते क्यूंकि उन्हे अपने बेटे बेटियों की शिक्षा की चिंता रहती है। लेकिन उन गरीब मा बाप के बच्चों का क्या कसूर जो गाँव मे ही पढ़ने को मजबूर हैँ, उन मा बाप के सपनो का क्या ? जो इन सरकारी स्कूल मे अपने बच्चों को पढ़ाकर उन्हे भी ऐसे बड़े अधिकारी – कर्मचारी बनते देखने का सपना संजोये हुए हैँ।

सरकार और सरकारी कर्मचारी के दो पाटों के बीच कब तक पीसेंगे गरीबों के बच्चे –

आपसी विवाद, वेतन विसंगति, सरकार की मजबूरी, कर्मचारियों का हक की बात एक तरफ लेकिन जरा इन सरकारी ड्रेस पहने झोला – बस्ता पकड़े बच्चों के आँखों मे आँखे मिलाकर क्या कोई ये कह सकता है की बच्चों इसमे तुम्हारा क्या दोष? कब तक हर टकराव की मार तुमको ही झेलना है? तुम्हारी बस इतनी ही गलती है की तुम गरीब और मजदूर घर मे पैदा हुवे, शायद इसलिए तुमको तुम्हारे शिक्षा और गुणवत्ता की मसंग करना शायद हक नही ! और तुम शायद जन्म भर ऐसे ही बिना गलती के बेवजह पीसते ही रहोगे जब तक तुम अगले जन्म मे किसी सरकार या सरकारी कर्मचारी के घर पैदा नही हो जाते या उस सिस्टम से लड़कर सरकारी कर्मचारी या सरकार नही बन जाते..!

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