करोड़ो रुपए का टैबलेट स्कूल में पड़े धूल खा रहे, जाने क्या है छत्तीसगढ़ सरकार की शालाकोश योजना…?
करोड़ों खर्च कर छत्तीसगढ़ के 55 हज़ार स्कूलों की ऑनलाइन मॉनिटरिंग के लिए पूरे छत्तीसगढ़ में पायलट प्रोजेक्ट के तहत शुरू की गई शालाकोष योजना पिछले 2 सालों से बंद पड़ी है.
योजना संचालन के लिए खरीदे गए करोड़ों रुपए के टैबलेट स्कूलों में कबाड़ की तरह धूल खा रहे हैं. वहीं स्कूलों की व्यवस्था वापस कागजों में सिमट आई है.
बता दें कि केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) द्वारा शालाकोष योजना के तहत स्कूलों की ऑनलाइन मानिटरिंग की योजना के लिए शुरू की गई योजना बंद पड़ी है. योजना के तहत बायोमैट्रिक्स के माध्यम से स्कूल के समस्त शिक्षकों, छात्रों के साथ-साथ एमडीएम की जानकारी एवं बायोमैट्रिक्स के माध्यम से डेटाबेस तैयार कर ऑनलाइन करने की योजना शुरू की गई थी. जिसके तहत छत्तीसगढ़ के 55000 स्कूलों में बायोमेट्रिक स्केनर एवं टैब प्रदान किए गए थे.
शिक्षा अधिकारियों का रिकार्ड रखा जाता था
इस योजना के तहत छत्तीसगढ़ के 55000 स्कूलों में बायोमेट्रिक स्केनर एवं टैब प्रदान किए गए थे. जिसमें स्कूल के स्टाफ के स्कूल पहुंचने एवं वापस जाने का रिकॉर्ड बायोमेट्रिक स्कैनर के माध्यम से रिकॉर्ड किया जाता था. रिकॉर्ड पूरे प्रदेश में शालाकोष सॉफ्टवेयर के माध्यम से शिक्षा अधिकारियों द्वारा सतत निगरानी में था, ताकि स्कूल की व्यवस्था सुचारू रूप से एवं व्यवस्थित की जा सके. इसके साथ ही एमडीएम की जानकारी भी टैब के माध्यम से रखी जाती थी. योजना के अनुसार शिक्षकों का वेतन भी आने एवं जाने के रिकॉर्ड के अनुसार बनाने का नियम था. पर टैब बंद होने के बाद व्यवस्था वापस कागजों में सिमट आई है. प्रधान पाठक भी मानते हैं कि जब टैब में बायोमैट्रिक्स के माध्यम से शिक्षकों की उपस्थिति दर्ज कराई जाती थी, तब शिक्षक भी समय पर स्कूल पहुंचते थे. इसके साथ ही निर्धारित समय के बाद ही स्कूल से वापस जाते थे. ऐसे में यह योजना बहुत ही कारगर थी. सरकार को टैब एवं सॉफ्टवेयर से निगरानी वापस शुरू करनी चाहिए, ताकि व्यवस्था सुचारू रूप से चल सके.
पायलट प्रोजेक्ट के तहत चुना था
शालाकोष योजना के तहत स्कूलों की मॉनिटरिंग की योजना के लिए प्रदेश को पायलट प्रोजेक्ट के तहत चुना था. जिसमें 50 करोड़ की राशि से सभी स्कूलों में टैबलेट वितरित किए गए थे. साथ ही 50 करोड़ तीन वर्ष के मेंटेनेंस के लिए तय किए गए थे. इसके साथ ही प्रदेश स्तर पर ऑनलाइन डाटा की लगातार निगरानी की जा रही थी. पर यह योजना क्यों बंद हो गई इसकी जानकारी जिला शिक्षा अधिकारी को भी नहीं है. क्योंकि मामला प्रदेश स्तर का है इसलिए अधिकारी कुछ भी कहने से बच रहे हैं.